क्षणिकाएं


असीमा भट्ट

1.
रात सो रही है...
मैं जाग रही हूं...
गोया बे-ख्वाब मेरी आंखें
और मदहोश है जमाना...

2.
बहुत खाली-खाली है मन
माथे पर इक बिंदी सजा लूं...

3.
अचानक कहीं-कहीं से
बुलबुल बोल उठती है
दिल में भूली-बिसरी यादें हूक बनके उठती हैं...

4.
मैं सड़क पार कर रही हूं
और महसूस हो रहा है
कि तुमने मजबूती के साथ, कस के मेरा हाथ थाम रखा है...

5.
छोटी होती जा रही जिंदगी...
बड़ी तुम्हारी यादें
और उससे भी बड़ा
हमारे-तुम्हारे बीच का फासला...

18 टिप्पणियाँ:

संगीता स्वरुप ( गीत ) 27 जून 2011 को 3:05 am बजे  

हर क्षणिका बहुत गहरे भावों को व्यक्त कर रही है ...
छोटी होती जा रही जिंदगी...
बड़ी तुम्हारी यादें
और उससे भी बड़ा
हमारे-तुम्हारे बीच का फासला.

कटु लेकिन सत्य ..

मीनाक्षी 27 जून 2011 को 3:42 am बजे  

मन की भाव लहरों का भावपूर्ण चित्रण मन को छू लेता है ...

Satish Saxena 27 जून 2011 को 4:05 am बजे  

हार्दिक शुभकामनायें !

प्रवीण पाण्डेय 27 जून 2011 को 6:29 am बजे  

यादें खाई पाटती भी हैं, बढ़ाती भी हैं।

संगीता स्वरुप ( गीत ) 27 जून 2011 को 7:54 am बजे  

चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 28 - 06 - 2011
को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

साप्ताहिक काव्य मंच-- 52 ..चर्चा मंच

नीलांश 27 जून 2011 को 6:37 pm बजे  

sabhi kshanikaaayen sunder hain


मैं सड़क पार कर रही हूं
और महसूस हो रहा है
कि तुमने मजबूती के साथ, कस के मेरा हाथ थाम रखा है...
nice

vijay kumar sappatti 27 जून 2011 को 9:25 pm बजे  

छोटी होती जा रही जिंदगी...
बड़ी तुम्हारी यादें
और उससे भी बड़ा
हमारे-तुम्हारे बीच का फासला...


------kuch kah nahi paa raha hoon aseema .. amazing lines ..
vijay

सदा 27 जून 2011 को 10:52 pm बजे  

छोटी होती जा रही जिंदगी...
बड़ी तुम्हारी यादें
और उससे भी बड़ा
हमारे-तुम्हारे बीच का फासला...

बहुत ही भावमय करते शब्‍द ।

vandana gupta 27 जून 2011 को 11:27 pm बजे  

छोटी होती जा रही जिंदगी...
बड़ी तुम्हारी यादें
और उससे भी बड़ा
हमारे-तुम्हारे बीच का फासला

कितना दर्द उतार दिया है ना इस मे…………वैसे सारी ही एक कहानी कह रही हैं।

महेन्द्र श्रीवास्तव 28 जून 2011 को 1:08 am बजे  

सच में.. बहुत सुंदर

Er. सत्यम शिवम 28 जून 2011 को 2:47 am बजे  

very nice....

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ 28 जून 2011 को 4:04 am बजे  

बहुत सुन्दर क्षणिकाएं...बधाई कभी मेरे भी ब्लॉग पर आइए

kavita verma 28 जून 2011 को 6:39 am बजे  

sunder kshanik bhavon ko sunder shabdon me bandha hai aapne...

अनामिका की सदायें ...... 28 जून 2011 को 9:04 am बजे  

sunder kshanikaayen.

वीना श्रीवास्तव 28 जून 2011 को 10:14 am बजे  

4.
मैं सड़क पार कर रही हूं
और महसूस हो रहा है
कि तुमने मजबूती के साथ, कस के मेरा हाथ थाम रखा है...

सभी क्षणिकाएं अच्छी...

Unknown 28 जून 2011 को 6:20 pm बजे  

अचानक कहीं-कहीं से
बुलबुल बोल उठती है
दिल में भूली-बिसरी यादें हूक बनके उठती हैं...
बहुत ही भाव विभोर करने वाली प्रस्तुति ..सभी क्षणिकाएं बहुत अच्छी ...

मुकेश कुमार सिन्हा 30 जुलाई 2011 को 4:22 am बजे  

ek se behtar ek:)

राजेश उत्‍साही 31 जुलाई 2011 को 1:34 am बजे  

बहुत खाली-खाली है मन
माथे पर इक बिंदी सजा लूं...
*
इन दो पंक्तियों में आपने जाने कितना कुछ कह दिया है।

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मैं कौन हूं ? इस सवाल की तलाश में तो बड़े-बड़े भटकते फिरे हैं, फिर चाहे वो बुल्लेशाह हों-“बुल्ला कि जाना मैं कौन..” या गालिब हों- “डुबोया मुझको होने ने, ना होता मैं तो क्या होता..”, सो इसी तलाश-ओ-ताज्जुस में खो गई हूं मैं- “जो मैं हूं तो क्या हूं, जो नहीं हूं तो क्या हूं मैं...” मुझे सचमुच नहीं पता कि मैं क्या हूं ! बड़ी शिद्दत से यह जानने की कोशिश कर रही हूं. कौन जाने, कभी जान भी पाउं या नहीं ! वैसे कभी-कभी लगता है मैं मीर, ग़ालिब और फैज की माशूका हूं तो कभी लगता है कि निजामुद्दीन औलिया और अमीर खुसरो की सुहागन हूं....हो सकता कि आपको ये लगे कि पागल हूं मैं. अपने होश में नहीं हूं. लेकिन सच कहूं ? मुझे ये पगली शब्द बहुत पसंद है…कुछ कुछ दीवानी सी. वो कहते हैं न- “तुने दीवाना बनाया तो मैं दीवाना बना, अब मुझे होश की दुनिया में तमाशा न बना…”

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